Tuesday, 6 December 2016

JANYE JAI LALEETA KE KHASH VAFADAR......

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता सोमवार शाम को निधन हो गया। जयललिता 68 साल की थीं और उन्होंने 11.30 पर अंतिम सांस ली। जयललिता को रविवार शाम को दिल का दौरा पडऩे के बाद से हालत नाजुक बनी हुई थी।तमिलनाडु के वित्त मंत्री ओ पन्नीरसेल्वम पिछले दो महीने से मुख्यमंत्री जयललिता की बीमारी के बाद से कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाल रहे हैं। हम आपको बता रहे हैं कि वे जयललिता के खास क्यों बने हुए थे-पन्नीरसेल्वम मंत्रिमंडल में जयललिता के सबसे वफादार और करीबी बताये जाते हैं। यही वजह है कि जयललिता के बीमारी के मद्देनजर गवर्नर विद्यासागर राव ने 11 अक्टूबर को अहम फैसला लेेते हुए जयललिता के सारे विभागों को उन्हें सौंप दिया था।2014 में आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में जयललिता के जेल जाने के बाद भी सेल्वम को ही मुख्यमंत्री बनाया गया था।इस दौरान पन्नीरसेल्वम ने निष्ठाप्रदर्शन के तहत जयललिता की कुर्सी पर भी नहीं बैठे। जयललिता के जेल से बाहर आते ही बिना देरी किए पनीरसेल्वम ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था।तमिलनाडु और एआईएडीएमके की सियासत में ऐसे कई मौके आए जब सेल्वम ने जयललिता का विश्वासपात्र होने का सबूत पेश किया।अपनी नेता जयललिता के लिए सेल्वम ने विश्वास और वफादारी की मिसाल पेश की. जयललिता का करीबी होने के चलते उन्हें 2 बार राज्य की कमान संभालने का मौका मिला।2001 में आय से अधिक संपत्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जललिता के खिलाफ कड़ा फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जयललिता किसी भी पद के लिए अयोग्य घोषित हो गई थीं, जिसके बाद जयललिता ने अपनी जगह सेल्वम को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे कर दिया।21 सितंबर 2001 से 1 मार्च 2002 तक पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। करीब 6 महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने के बावजूद पन्नीरसेल्वम ने जयललिता के विश्वास को बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने जयललिता की जानकारी के बिना सरकार से जुड़ा कोई फैसला कभी नहीं लिया।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से जयललिता की सजा खारिज होने का बाद सेल्वम ने तुरंत मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद जयललिया का प्रदेश के मुखिया बनने का रास्ता साफ हो गया।दूसरा मौके 2014 में आया जब जयललिता को आय से ज्यादा संपत्ति मामले में जेल जाना पड़ा। पिछले अनुभव को देखते हुए इस बार भी पार्टी के कई बड़े नेताओं को दावेदारी को दरकिनार करते हुए जयललिता ने पन्नीरसेल्वम को अपना नुमाइंदा चुना।

No comments: